क्या होता है (Electoral Bonds) चुनावी बॉन्ड : सुप्रीम कोर्ट ने 14 मार्च 2024 को इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दी है। सर्वोच्च अदालत ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। चुनाव आयोग के द्वारा SBI से मिली इलेक्टोरल बॉन्ड से संबंधित पूरी जानकारी को बीते गुरूवार को अपनी वेबसाइट Election Commission Of India पर अपलोड कर दिया गया है। दरअसल कोर्ट ने 15 मार्च तक की शाम 5 बजे तक चुनाव आयोग को यह डेटा अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक करने के लिए कहा था।
सार्वजनिक किए गए आंकड़ों के अनुसार मिली जानकारी से पता चलता है की इस अवधि में BJP को कुल 60 अरब रुपये से भी अधिक की धनराशि प्राप्त हुई है। तो वहीं दूसरी तरफ सबसे अधिक कीमत वाले इलेक्टोरल बॉन्ड को खरीदने वाली कंपनियों में नंबर 1 कम्पनी के रूप में फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज़ का नाम आया है। जिसने 1368 करोड़ रुपए के बॉन्ड्स खरीदे हैं। अब सवाल मन में यह आता है कि आखिर ये इलेक्टोरल बॉन्ड क्या होते हैं? कितने रुपए के होते हैं? इनको भुनाने की समयावधि क्या होती है? आज हम आपको इलेक्टोरल बॉन्ड से संबंधित हर छोटे बड़ी जानकारी देंगे। जिससे हर उन सवालों का जवाब मिल सके हो आपके मन में हैं।
क्या होता है चुनावी बॉन्ड? What Is Electoral Bonds?
चुनावी बांड एक प्रकार का वित्तीय उपकरण होता है जिसका प्रयोग राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दान देने हेतु किया जाता है। आम जनता से लेकर किसी भी कम्पनीने द्वारा पात्र राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए इन बॉन्ड्स का प्रयोग किया जा सकता है। बॉन्ड्स के लिए अभियान चलाने हेतु पात्र सभी राजनीतिक दलों को पहले लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में मौजूद धारा 29ए के तहत रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी होता है।
बता दें की ये बॉन्ड बैंक नोटों के समान ही अपनी भूमिका निभाते हैं, जो बॉन्ड धारक को ब्याज तथा मांग से भी मुक्त देय होते हैं। किसी भी व्यक्तिगत पार्टी के द्वारा इन बांडों को डिजिटल तरीके से अथवा डीडी एवं चेक की मदद से भी खरीदा जा सकता है। बता दें की चुनावी बांड 29 जनवरी, 2018 में पेश किए गए थे तथा प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार के द्वारा ही चुनावी बांड योजना को साल 2018 को अधिसूचित किया गया था।
चुनावी बांड योजना कैसे काम करती है? How does the Electoral Bond work?
कोई भी भारतीय कॉर्पोरेट संस्था या पंजीकृत एजेंसी अथवा अविभाजित हिंदू परिवार के द्वारा अपनी पसंद के हिसाब से उन सभी राजनीतिक दलों को धन दान करने के लिए चुनावी बांड को जारी कर सकते है जो इस अभियान के लिए पात्र हैं तथा उनकी पसंदीदा पार्टी है। आरबीआई के द्वारा अधिसूचित बैंक ही ये बॉन्ड जारी कर सकती है। फिलहाल बॉन्ड जारी करने का अधिकार SBI यानी भारतीय स्टेट बैंक के पास था।
चुनावी बांड खरीद के लिए प्रत्येक तिमाही की शुरुआत में दस दिनों के लिए उपलब्ध होते हैं। जनवरी, अप्रैल तथा जुलाई एवं अक्टूबर के पहले दस दिनों में ही सरकार के द्वारा निर्दिष्ट चुनावी बांड की खरीद की जा सकती है। हालांकि सरकार को लोकसभा चुनाव वाले वर्ष में 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि भी मिलती है।कोई भी पार्टी जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 ए के अंतर्गत पंजीकृत है तथा जिसने हाल ही में हुए आम चुनावों तथा विधानसभा चुनावों में कुल मतदान का कम से कम 1 प्रतिशत वोट हासिल किया हो। अब वह चुनावी बांड को प्राप्त करने का हकदार बन जाता है।
भारतीय चुनाव आयोग के द्वारा पार्टी को एक सत्यापित खाता दिया जाता है। जिसके बाद इसी खाते से चुनावी बांड के सभी लेनदेन किए जाएंगे। चुनावी बांड पर किसी भी दानकर्ता का नाम नहीं होगा। इस प्रकार यह किसी भी राजनीतिक दल को उसके दाता की पहचान के बारे में कोई भी जानकारी नहीं देता है। आमतौर पर इलेक्टोरल बांड ₹1000, ₹10,000, ₹1,00,000, ₹10,00,000, तथा ₹1,00,00,000 मूल्यवर्ग में उपलब्ध होते हैं।
चुनावी बांड को जारी करने पर कई कर लाभ भी हैं। बता दें की चुनावी बांड दाता को बॉन्ड देने के बदले अतिरिक्त कर लाभ भी प्राप्त होता है।
आयकर अधिनियम के अंतर्गत किसी के चुनावी बांड में दान को धारा 80 जीजी तथा धारा 80 जीजीबी के अंतर्गत कर-मुक्त माना जाता है। हालाँकि, दान प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल को भी आयकर अधिनियम की धारा 13 ए के तहत दान प्राप्त करने की अनुमति होती है।
चुनावी बांड का प्रयोग करना एक बेहद सीधी प्रक्रिया है। इसमें बांड 1,000 रुपये तथा 10000 रुपये एवं 100,000 रुपये तथा 1 करोड़ रुपये वाले गुणकों में जारी किए जाएंगे। हालाँकि इसकी सीमा 1,000 रुपये से 1 करोड़ रुपये के बीच में ही है।
ये चुनावी बांड एसबीआई की कुछ शाखाओं में ही उपलब्ध हैं। केवाईसी अनुपालन वाला खाता रखने वाला कोई भी दानकर्ता इन बॉन्ड्स को खरीद सकता है तथा अपनी पसंद के किसी राजनीतिक पार्टी एवं व्यक्ति को दान कर सकता है।
चुनावी बांड को एकत्र करने वाले के द्वारा प्राप्तकर्ता पार्टी के किसी सत्यापित खाते के द्वारा बांड को भुनाया जा सकता है। हालाँकि इसके लिए वैधता सिर्फ पंद्रह दिनों के लिए ही वैध होती है।
चुनावी बांड की वैद्यता – Validity Of Electoral Bond?
बता दें की बॉन्ड्स का मूल्य कोई भी हो लेकिन चुनावी बांड जारी होने के पर्षात ये 15 दिनों तक ही वैध रहते हैं। इसलिए इन्हे 15 दिनों के अंदर ही भुनाना पड़ता है। जनता अथवा निगमों के द्वारा जारी चुनावी बांड राजनीतिक दलों को प्राप्त होते हैं। जिसके बाद राजनीतिक दलों से यह उम्मीद होती है कि वे 15 दिनों के अंदर ही प्राप्त होने वाले कुल चुनावी बांड पर अपना रिटर्न दाखिल करने हेतु चुनाव आयोग से संपर्क करेंगे।
उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति को जनवरी तथा अप्रैल के महीने में दस दिनों की समयावधि के लिए तथा फिर वर्ष के बिल्कुल अंत में जुलाई तथा अक्टूबर में अपने बांड जारी करने की अनुमति होती है। अगर यह चुनावी साल है, तो ये चुनावी बांड जारी करने हेतु 30 दिनों की अवधि होगी।
चुनावी बांड योजना के फायदे : Benefits Of Electoral Bond Scheme?
- जारी किए जाने वाले सभी चुनावी बांड एक ही बैंक खाते से भुनाए जा सकते हैं, जिसका खुलासा भारत के चुनाव आयोग के द्वारा किया गया है; इसलिए इससे अनाचार में कमी आती है।
- चुनावी बांड का व्यापक उपयोग होने से उन राजनीतिक दलों को भी रोकने में मदद कर सकता है जो सिर्फ जनता के द्वारा धन इकट्ठा करने के लक्ष्य के साथ ही काम करते हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि आम चुनाव में कम से कम 1% वोट पाने वाली तथा पंजीकृत पार्टियां ही इस चुनावी फंडिंग को प्राप्त कर सकती हैं।
- चुनावी बांड के द्वारा चुनावी फंडिंग को पूरी तरह से सुरक्षित माना जाता है तथा ये डिजिटल बनाने वाले सरकारी लक्ष्य के साथ मिलकर काम करते हैं। इसलिए 2000 रुपये से ज्यादा का कोई भी चंदा चुनावी बांड तथा चेक के रूप में होना कानूनी रूप से जरूरी है।
- चुनावी बांड के अंतर्गत सभी लेन-देन चेक अथवा डिजिटल तरीके से ही किए जाते हैं।
चुनावी बांड से होने वाले नुकसान : Disadvantages of Electoral Bonds?
- कुछ आलोचकों का यह मानना है कि चुनावी बांड से विपक्षी दलों को अब तक मिलने वाली फंडिंग को रोकने के लिए ही इसे प्राथमिक उद्देश्य से लागू किया गया है।
- चुनावी बांड के द्वारा आर्थिक रूप से स्थिर कंपनियों को कोई भी खतरा नहीं होता है। इसलिए इन कंपनियों का लक्ष्य एक राजनीतिक दल के लिए किसी दूसरे राजनीतिक दल की तुलना में अधिक से अधिक वित्तपोषित करना है।
- किसी भी राजनीतिक दल को कंपनी के उसके वार्षिक लाभ का करीब 7.5% दान करने की सीमा को समाप्त होने के बाद से इसे और भी बढ़ावा मिला है।
ऐसा माना जाता है की चुनावी बॉन्ड की शुरुआत होने के बाद से राजनीतिक पार्टियों के द्वारा डोनेशन लेने का तरीका भी काफी बदल गया है। इन बॉन्ड के आने से पैसा देने वाला उनको एक कानूनी तरीका मिला तथा उन लोगों एवं संस्थाओं के लिए भी यह एक पसंदीदा उपाय बन गया जिससे वे अपनी पहचान को जाहिर किए बिना ही राजनीतिक पार्टियों को मनमर्जी का चंदा दे सकते हैं।
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के अंतर्गत चुनावी बॉन्ड को एक वचन पत्र के तरीके से जारी किया जाता है जिसमे एक वाहक होता है। ADR यानी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार वाहक वह होता है जिस पर लेनदार तथा देनदार का नाम नहीं होता तथा साथ ही ना तो किसी तरह की कोई ओनरशिप रिकॉर्ड की जाती है। बता दें की जिसके पास भी यह वाहक होता है, उसी को उनका मालिक मान लिया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने Electoral Bond क्यों रद्द किया?
सुप्रीम कोर्ट ने बीते गुरुवार को इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता पर एक फ़ैसला सुनाते हुए इस पर तत्काल रूप से रोक लगा दी है। दरअसल सर्वोच्च अदालत ने इसे अब असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना संविधान में अनुच्छेद 19 (1) (ए) तथा सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि राजनीतिक पार्टियों को इसके माध्यम से आर्थिक मदद मिलने के साथ ही उसके बदले में कुछ और भी प्रबंध करने की व्यवस्था को काफी बढ़ावा मिल सकता है।
चीफ़ जस्टिस ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड काले धन पर काबू पाने वाला एकमात्र तरीक़ा नहीं हो सकता है। इसके कई और भी विकल्प हो सकते हैं।
अंततः हम देखे तो चुनावी बांड को लाने का लक्ष्य राजनीतिक फंडिंग के स्रोतों में अधिक से अधिक पारदर्शिता को बढ़ाने का था। इस योजना के द्वारा इलेक्ट्रॉनिक रूप से जारी किए बांड के द्वारा डिजिटल रूप से दान करते हुए दाता के अधिकारों की भी रक्षा करने का सबसे अच्छे तरीके को प्रदान करती है। किंतु सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इसका गहन अध्ययन करने के बाद इसको अब रद्द कर दिया गया है।